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सोच के उस दायरे मे सारे
प्रयत्न विफल हैं शांति के जब कोई विभीषण अपने ही घर का भेद खोलता
है,ये घातक आस्था उस(विभीषण)
पर इस तरह हावी है कि उसे अपना अपमान स्वीकार है मगर तुम्हारा सम्मान कतई स्वीकार नहीं, इस ओछी विघटन करने
की राजनीति का शीघ्र ही उन्मूलन होगा और ऐसा होगा कि सूक्ष्म से सूक्ष्म
स्थान भी पर्याप्त नहीं होगा तुम्हे अपनी
कुटिल मुखाकृति छुपाने को !!
षडयंत्र रचते हैं और पकड़े जाने पर निर्लज़्ज़ता से अपनी बात का औचित्य सिद्ध करते हैं,
मगर उनके मस्तिष्क मे फिर भी पश्चाताप की
एक भी रेखा नहीं होती
खेद है कि ऐसे तथाकथित मित्रों और
सम्बंधियों से अच्छे तो हमारे शत्रु हैं ,
कम से कम हमे उनके वार का तो पता
रहता है,
आँखों मे झूठी संवेदना,असत्य सांत्वना,हित
करने का मिथ्या मण्डन तो कोई इनसे सीखे,
क्षुब्ध हूँ,और अशांत भी मगर,अब सत्य
का उद्घोष होकर रहेगा, अगर तुम कपट,छल के ज्ञाता हो
तो मैं तुम्हारे लिये विध्वंसक
हूँ ,एक ऐसा विध्वंसक जो तुम्हे मूल से उखाड़ फेंकेगा ,
और उसके बाद तुम्हे अपनी धारणा पर बहुत
पश्चाताप होगा,
ये तुम्हारे भीतराघात और आघात पर मेरा
विस्फोटक प्रतिघात होगा!
तुम्हारे इस कुचक्र ,स्वार्थ पोषित
चक्रव्यूह को मैं तोड़ कर रहूँगा ! हाँ मैं अर्जुन नहीं हूँ
लेकिन मैं नव-अभिमन्यु हूँ जिसे तुम
अबोध समझकर बड़ी तन्मयता और सरलता से ले रहे हो ये नव अभिमन्यु अब तुम्हारे चक्रव्यूह
को तोड़कर भस्म करके ,फिर उस से पार पाने मे भी समर्थ है ! और मैं विनाशक
भी हूँ जो तुम्हारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व को
समूल नष्ट करने का शौर्य और योग्यता अपने पास रखता हूँ !!!
-राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'