Thursday, November 30, 2017

वाह रे अहं !



वाह रे अहं ! अंततः तू मेरे व्यक्तित्व का पतन करने में सफल हो ही गया, क्यों आखिर क्यों हुआ ये, संभवतः अति परावलम्बी  मानसिकता ने मेरे लिए विषाक्त सामग्री का काम किया, क्या मित्र , क्या शत्रु, क्या शुभचिंतक और क्या आलोचक , सभी ने अपने अपने चरित्र का अर्ध विश्लेषण किया , सभी पर आत्म अनुशंसा और स्वार्थपरता की मोटी चादर चढ़ चुकी है , क्योंकि सभी सिर्फ अपने जीवन तक ही सीमित है ,

किसी के अंदर भी लोक कल्याण की भावना सिर्फ भाषणों तक सीमित है ,
अपनी अंदर के क्षीण विचारों की समालोचना कोई नहीं करता,
मगर दुसरे के व्यक्तित्व की छीछालेदार करना अब समाज के लिए अब रुचिकर हो गया है ,
मैं भी इस भ्र्ष्ट तंत्र का हिस्सा बन चुका हूँ, क्योंकि मैंने अपने चारों  ओर
अभिमान की एक गहरी रेखा खींच दी है, हाँ मेरा अहंकार दिन प्रतिदिन मुझसे जीत रहा है
और मेरे व्यक्तित्व के सभी सकारात्मक गुणों को दीमक की भांति खा रहा है
विचारधारा अब ये नहीं कि मैंने क्या गलत किया है ,
अवधारणा ये है कि मेरे मन के अंदर कितनी सारी भ्रांतिया मैंने पाली हुई है|
वो इसलिए क्योंकि किसी ने हास्य विनोद में मेरी प्रशंसा की और मुझे ये दम्भ हो गया कि मेरे सामान कोई भी बुद्धिशाली नहीं मगर मैं निश्चित ही भ्रम में था ,
क्योंकि धुरंधरों की कोई कमी नहीं इस संसार में !,
 इसलिए अभिमान का चोला उतारो और सहृदयता की बूटी को जीवन में आत्मसात करो ,
 और ये सिर्फ तुमसे नहीं
 स्वयं से भी कह रहा  हूँ

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