Thursday, October 27, 2016

आकाश तू एकाकी हो गया आज!!!!!!

आकाश तू एकाकी हो गया आज  !!!
क्योंकि धूप के छीटों  को समेटता  है बादल जो बरसना तो दूर बस उमस की फुहार लाता है और चाँद है कि अंधेरे पी रहा है  क्योंकि  सड़क पर धूल के साथ साथ खून से सने कपड़े मिले हैं, जहाँ आदमी आदमी को मरता छोड़कर अपनी ज़िंदगी मे व्यस्त है जहाँ मानवता कटोरा लेकर भीख मांगती है लेकिन उसे दया तो छोडो कोई दृष्टि भी नहीं मिलती | .एक अजीब सी होड़ लगी हुई है जिसमे अपने आपको श्रेष्ठतम कहलाने हेतु  
जो भी संभव होगा वो किया जाएगा, फिर चाहे वो अनुचित हो या 
अन्याय संगत हो, पीड़ा तो होती है मगर उस पीड़ा को इसलिए दबा दिया जाता है 
क्योंकि पैसे की खनक और दंभ का आईना सामने आ जाता है मौसम भी धू धू कर के जल रहा है! 
अरे सूर्य के ताप से नहीं ईर्ष्या के प्रचंड महाताप से, 
यह अनावश्यक ही जीवन की गति को धीमी कर रहा है !! 
क्योंकि मुझे तेज़ चलना है फिर भले ही मेरे पाँव तले कोई भी कुचल जाये , 
मुझे कोई परवाह नहीं , 
जब वैसे ही जंगल राज है तो क्या औचित्य है नैतिकता और सत्य निष्ठा का !!
वो तो मात्र भाषण की प्रतिलिपि के तौर पर प्रयोग होती है ! 
और भाषण और उपदेश ख़त्म होने पर किसी कूड़े के ढेर में फेंक दी जाती है !!
हाँ कूड़े का ही ढेर हैं सिर्फ सड़क पर नहीं ,
लोगों के मन मस्तिष्क पर भी है ,
और उन लोगों में सर्वप्रथम पंक्ति में मैं खड़ा हूँ ,
क्योंकि मुझे अपना व्यापार बढ़ाने के लिए प्रतिदिन सौ असत्य बोलने पड़ते हैं ! 
और असत्य हमारी जीवनशैली बन चुकी है !! 
असत्य जीवनशैली ही नहीं हमारा व्यक्तित्व, वातावरण और आचरण भी हो चुका है !! 
अनंत संभावनाएं खड़ी हैं और मैं उनसे एक अच्छा अवसर पाना चाहता हूँ मगर ये बेशर्म आदर्शवादिता रोज़ मेरे कान खाती है !! इस से मुझे मुक्ति चाहिए कोई दिला सकता है ! 
अवश्य दिलाएगा कोई न कोई, क्योंकि यहाँ नृशंसता, नपुंसकता, पापी , निर्लज्जता और निर्दयता  के कई महारथी हैं जिनका जीवन स्वर्ण की भांति चमक रहा है !! 
भले ही उनके आसपास सिद्धांतों का अपहरण हो !! 
किन्तु उनके माथे पर लेशमात्र भी चिंता का  संबल नहीं पड़ता !! 
खेले खाये व्यक्ति हैं ! अपच भी नहीं होता इतनी सारी सम्पति हड़पने पर| धन्य है ऐसे व्यक्ति , उनसे बड़े धन्य हम  है जो उन्हीं के पदचिन्हों पर चल रहे हैं !! 
सत्य और नैतिकता का क्या  है वो  वैसे भी जीवित रहेंगी बड़ी बड़ी पोथियों और किताबों में , विद्यालयों में , नारों में , भाषणों में ! बस यार आचरण और जीवन में उसको लाने को मत बोलना, क्योंकि ये सफलता के आड़े बहुत आती है !! 
चलो अब चलते हैं ज़रा अपनी धूर्तता से सफलता प्राप्त करने को!!


- राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब' 

आत्मा का मरण

  स्वप्न सम्भवतः सबसे पीड़ादायक है वो आपके अंतरमन को छलनी कर देता है मैं प्रेम पाश की मृग तृष्णा में अपने अस्तित्व का विनाश कर रहा हूँ कब तक ...