Sunday, March 4, 2018

प्रपंच मंडली....



भूलवश समझता रहा कि मेरे पास
शुभचिंतकों का भण्डार है, संभवतः यह
मेरे जीवन का सबसे बड़ा भ्रम है | कैसे एक व्यक्ति अपनी
तृष्णाओं और आकाँक्षाओं की पूर्ति के साधक खोजता है,
परिस्थितिवश वो व्यक्ति सहृदयता की नौटंकी करके स्वयं को
आपके प्रति आत्मीय सिद्ध करने का प्रयास करता है,
और इन्हे आधुनिक शब्दकोष
में मित्र की संज्ञा दी गई है| मित्र !
अरे कैसे मित्र हैं ये, जो स्वार्थ सिद्धि की चरम पराकाष्ठा को पार
करते हैं| क्या यही है इस समाज का निरर्थक और निर्लज्ज स्वरूप जो मात्र स्वहित
की परिधि तक सीमित है , इनका उद्देश्य सिर्फ सहानुभूति और धन की उगाही है,
यहाँ सामूहिक विचारों का सम्प्रेषण नहीं होता,
अपितु ये अपने बनाये हुए पूर्वाग्रह और
कुविचार आप पर लादते हैं|
ये स्वयं के अनुसार आपके जीवन को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं
तथा आपके दृष्टिकोण को नगण्य समझते हैं और
अपने निर्णयों का निरंकुशता से पालन करवाने की
महत्वकांक्षा रखते हैं, नेतृत्व करने की चाह रखते हैं,
परन्तु सहभागिता को अपने पास तक नहीं फटकने देते|
और तो और इतनी ईर्ष्या, इतना दम्भ और इतनी कृतघ्नता है
इनके भीतर कि स्वयं की आवश्यकता होने पर
एक याचक की भांति हाथ फैलाते हैं और आपका समय आने पर
मौन अवस्था और अस्वीकृति की मुद्रा में आ जाते हैं|
वहां अपने आपको असहाय दिखने का छद्म करते हैं|
परन्तु समय का प्रहार बड़ा ही कटु और पीड़ादायक होता है
और यदि यही धूर्तता की प्रवृति विद्यमान रही तो भविष्य में
किसी भी प्रकार की आशा करने वाले अपरिपक्व तथा लोभी
मानसिकता के लोगों के लिए  द्वार बंद हो जाते हैं |
सहयोग़, निष्ठा और समन्वय बहुत ही मूलयवान चरित्र हैं जीवन के,
और इस प्रपंच मंडली तथा अमित्र समूह से इसकी अपेक्षा करना बेमानी है|

-राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

आत्मा का मरण

  स्वप्न सम्भवतः सबसे पीड़ादायक है वो आपके अंतरमन को छलनी कर देता है मैं प्रेम पाश की मृग तृष्णा में अपने अस्तित्व का विनाश कर रहा हूँ कब तक ...