एक व्यक्ति का विचार अन्य से बेमेल है
इसमें कोई आश्चर्य नहीं , मगर जब
इसके फलस्वरूप विवादों की प्रतिस्पर्धा
होती है तो मेरी ह्रदय की वेणियों
के तार झंकृत होने के बजाय बेसुरे राग
से व्याकुल हो उठती हैं ,इसलिए मैं
निर्णय करताहूँ किसी का पक्ष न लेकर बस चुप रहूँ ,
मगर मेरी चुप्पी को कायरता की पदवी देने
वालों को इतना बता दूँ कि मैं मौन हूँ पर
अशांत नहीं , मैं वो बूँद हूँ जो
समय कि धार से
सागर में परिवर्तित हो जाती है ; संस्कृति
से अलगाव की शूलशय्या जब मेरे मस्तिष्क
का छिद्रभेदन कर अपनी ओट में सुलाती
है तो नयनो से नींद के बजाय घोर विलुप्तता
का आभास होता है , मेरा ही नहीं ; मेरे भावों,
विचारों, आचरण और सबसे प्रमुख
मानवता का ! बस इसी निष्कर्ष पर
पहुंचा हूँ कि जीवन- वृक्ष की शुष्क पत्तियों
पर जल की कुछ बूँदें भी डाली जाएँ
तब भी वह जीर्ण और शिथिल
रहेगा मेरे अंतर्मन की भांति
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'