Sunday, November 3, 2013

जीवन-स्मृति


एक प्रतिलिपि जीवन की श्वास लेती हुई
त्रिभुजाकार ह्रदय पर निवास करती है ,
श्वेत-श्याम वर्णों से चमक कर रुधिर कणों
में बहती है ; उसमे इतनी गहनता सम्माहित है
कि वह  अधखुले नेत्रों से स्वप्न देखती है
और विचार करती है कि कौन सा
ऐसा विविधता भरा प्रश्न मष्तिष्क में
कोलाहल को जन्म देता है , शायद
उसकी सोच चिरकाल तक यही रहती है कि
जीवनधारा कि अवधि पर विराम लगने से
कैसे बचा जाए, कौन से नवीन व प्रचलित
उपकरणों से आयु का सीमित दायरा
असीम अम्बर के समक्ष प्रतीत हो , मगर
खेद है कि जब इसी जीवन में निराशा के
सर्पदंश लगते हैं तो वह इस से मुक्ति की
कामना करता है और उमंग से भरा होने पर
एक जीवन को अल्पावधि की संज्ञा देता है मगर
म्रत्यु जैसे अटल सत्य को उसकी
महत्वाकांक्षा , महानता, त्याग ,    
बोधशीलता और बहुत सारे सदगुण
रोकने में असमर्थ है किन्तु जीवन से जुडी
उसकी मधुर व कटु स्मृतियाँ जीवित रहेंगी
उसे मृत्यु भी नहीं छीन सकती


राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

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