Friday, October 6, 2017

चक्रव्यूह

आशा धूमिल हुई, क्यों हुई ये ज्ञात नहीं
नवजीवन का छोर जब आरम्भ हुआ तो मन में
कौतुहल था, जिज्ञासा थी, स्वप्न बेला सजाई गयी थी,
प्रारंभिक अवसरों पर उसने मुझे प्रभावित भी किया |
परन्तु ऐसा दृश्य दिखा की वो भी पुरानी परिपाटी पर
चल रहा है , जहाँ मैंने अपने विचारों को जाने से रोक दिया है|
 समस्त संसृति में आपकी माता (जननी) तथा मातृभूमि से
आत्मीय सम्भवतः कोई नहीं, कदाचित कोई नहीं ,
यहाँ आडम्बर का प्रदर्शन होता है, दिवास्वप्न दिखाया जाता है,
खेद है कि ना चाहते हुए भी आपको तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है,
कुछ लोग विरोध करते हैं, कुछ समर्थन करते हैं, कुछ स्थिर अथवा तठस्थ हैं, स्तिथि का
अवलोकन कर रहे हैं| अवसरवादी होना कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि यह
उनकी वस्तुस्तिथि को प्रदर्शित करता है| दृश्य रंगहीन हैं, अपशब्दों की
वर्षा हो रही है अन्य लोगों के प्रति पर स्वयं के लिए इन्हे सिर्फ प्रशंसा चाहिए|
 अचंभित हूँ की किसी की मानसिकता इतनी निम्नस्तर की हो सकती है कि
वे छद्म लोक कल्याण करने की भावना का सम्बल लेते हुए अपने निजी स्वार्थो
की सिद्धि चाहते हैं ! मोहभंग हुआ सभी संबंधों से केवल अपनी जननी(माता) के अतिरिक्त | वो निश्छल है, निष्कपट है और उसका प्रेम और निष्काम भाव से मेरे हर कार्य की सफलता सुनिश्चित हो जाती है | खेद है कि मेरा उग्र और क्रोधित स्वभाव के कारन मैं उसे कभी कभी व्यथित कर देता हूँ
हालाँकि ये किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं, पर समय के उस बिंदु पर मैं विवेकहीन हो जाता हूँ|
परन्तु मेरे अंदर के द्वन्द और क्रोधाग्नि का मैं क्या करूं, षड्यंत्रों का जाल काटते -काटते मेरी
प्रवृति भी पशुओं के भांति हो चुकी है | मेरे व्यवहार और विचार में किसी नरपिशाच का आचरण सम्मिलित हो जाता है| हमारे तथाकथित शुभचिंतक हमारे आस पास बड़ी तन्मयता से अवसर मिलते ही
उलाहना देते हैं| यही कारन है की मैं असभय  हूँ , अशिष्ट हूँ, निडर और आशावादी भी
जिस तरह का व्यवहार होगा उसी तरह के आचरण मेरा भी होगा मैं तत्पर हूँ एक नए चक्रव्यूह को ध्वस्त करने को

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